मार्च 04, 2010

वक्त नई कहानी का है

मैं परेशान हूँ क्योंकि वक्त परेशानी का है
मेरा नहीं मसला वतन की जिंदगानी का है

ये सुलगते मंज़र,ये संवेदनाओं की ख़ामोशी
वाकई मैं हैरान हूँ क्योंकि वक्त हैरानी का है

बैठे रहेंगे कब तक यूं मूँद कर अपनी आँखें
जगो!वक्त अब हर ज़र्रे पर निगरानी का है

ये ख़ामोशी,ये अनजानापन आखिर कब तक
हटा दो मुंह से हाथ ये वक्त मुखर वाणी का है

धुंधले हुए इतिहास के पृष्ठों पर रचे हुए हरूफ़
वक्त को इंतज़ार अब इक नई कहानी का है

मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

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