राह तकते आँखों में छाले हुए
मिट रहे हसरते दीद पाले हुए
जाने कहाँ ठहर गया वो मुसाफ़िर
जिसकी खातिर हम मौत टाले हुए
मेरी पुस्तक "ज़र्रे-ज़र्रे में वो है "से
लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
राह तकते आँखों में छाले हुए
मिट रहे हसरते दीद पाले हुए
जाने कहाँ ठहर गया वो मुसाफ़िर
जिसकी खातिर हम मौत टाले हुए
मेरी पुस्तक "ज़र्रे-ज़र्रे में वो है "से
सहरा में आब-ऐ नक्श ढूंढते रहे
दीवारो-दर तेरे ही अक्श ढूंढते रहे
जाने तूं है भी कि नही, तेरी खातिर
हम काबे -काशी में बिखरते टूटते रहे
मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो हे "से
मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे "
ये दौलोत 'ये सोहरत ये हैसियत-ओ -सबाहत ये रिफ़कत
ये सभी बुल-बुले इक दिन मौज़े -फ़ना में गुम हो जायेंगें
बात बस इतनी सी है फ़क़त चंद सांसों के खेल के बाद
फ़िर से वही मिट्टी की ढेरी हम-तुम,तुम-हम हो जायेगें
मेरी पुस्तक "इक कोशिश रोशनी की ओर "से
मुश्ते -ख़ाक जरुर नसीब होगी अपने वतन की
ज़हनो-दिल में ये आरज़ू लिए हम फ़ना हो गए
गैर मुल्क में है अब घर इस बदनसीब का
तो बकानून ये हक़ भी हमको मना हो गए
मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो है "से
घर की दुछत्ती सा निरंतर अथाह अनंत दुखों का बोझ ढोता है मन
ज़िंदगी फ़िर भी करती है कोशिश बैठक की तरह मुस्कराने की
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
सुख शांती मंगल से परिपूर्ण ये संसार हो जाये
हर एक मन साँस में मानवता का संचार हो जाये
मिटा दो ये युद्ध विध्वंस तो बड़ा उपकार हो जाये
इस धरती से ख़त्म सरहदों की दीवार हो जाये
मिट जाये ये जांत-पांत दुनिया एक परिवार हो जाये
सचमुच ज़न्नत कहीं है तो ज़मी पे साकार हो जाये
काश !यक ब यक ऐसा कोई चमत्कार हो जाये
तो यक़ीनन खुद ब खुद तुझे नमस्कार हो जाए
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
समंदर के सामने कतरे को खड़ा कर दिया
हौसला मेरे छोटा था ,उसें बड़ा कर दिया
तेरे रहमो-करम का शुक्रिया कैसे अदा करूं
मेने थोड़ा माँगा,तुने बढ़ा-चढ़ा कर दिया
मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो है "से
नही करती व्यक्त
प्रतिक्रिया
अब किसी भी बात पर
शायद ये खबर है
मेरे पागल होने की
मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पर "से
काँटों की सारी खलिश मेरे साथ दफ़न कर देना
ज़माने के तमाम ग़मो को मेरा कफ़न कर देना
ये आंधियां नफ़रतों की थम जाये मेरी नब्ज़ संग
या इलाही उस रोज़ से प्यार भरा चमन कर देना
मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो है "से