अपने मरने के बाद
किसी को
दान में दे जाना चाहती थी
मैं अपनी आँखें
ताकि मेरे मरने के बाद भी
देख सके
इस खूबसूरत जहान को
ये मेरी आँखे
पर अब नहीं देना चाहती
किसी को
किसी भी कीमत पर
मैं अपनी आँखें
यह बहता लहू
ये सुलगते मंजर
मेरे मरने के बाद भी
क्यों देखे
बेचारी मेरी आँखें
आशा पाण्डेय ओझा
दस साल पहले आई मेरी पुस्तक "दो बूँद समुद्र के नाम" से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें