अगस्त 08, 2014

अपने मरने के बाद

किसी को
दान में दे जाना चाहती थी
मैं अपनी आँखें
ताकि मेरे मरने के बाद भी
देख सके
इस खूबसूरत जहान को
ये मेरी आँखे
पर अब नहीं देना चाहती
किसी को
किसी भी कीमत पर
मैं अपनी आँखें
यह बहता लहू
ये सुलगते मंजर
मेरे मरने के बाद भी
क्यों देखे 
बेचारी मेरी आँखें


आशा पाण्डेय ओझा

 दस साल पहले आई मेरी पुस्तक "दो बूँद समुद्र के नाम" से