ऐक राजस्थानी गीत
थां बिन सूनां दिनड़ा म्हारा,
थां बिन सूनी रात जी।
आओ सायब चार दिवस थें,
सुण लो मन री बात जी।।
आखी आखी रात उडीके,
जीव उडीके,गात उडीके।
ओढ़ कसूम्बल रूप उडीके,
लावण आळी ,धूप उडीके।
तकतां तकतां मारग थांरो,
ढळगी अणगिण रात जी।
चेत, जेठ, आसोज उडीके,
सावण भादौ रोज उडीके।
भीज्या-भीज्या खेत उडीके,
धोरां वाळी रेत उडीके।
गांव हुवे जद भेळो सारो,
चाले थांरी बात जी।
मेल माळिया कमठा माँगे,
रिपिया रोज साँवठा माँगे।
अगला महिना पीतर जागे,
बाबोसा री बरसी आगे।
भेळा हुग्या दुनिया भर रा,
धोक,झडूला,जात जी।
दादीसा रो जी नीं सोरो,
नाम रटे हैं थांरो कोरो।
बाईसा रो करणो फेरो,
कारज सारा आय अन्वेरो।
आँगळियां दिन गिणता गिणता,
महिना हुग्या सात जी।
आशा पाण्डेय ओझा
थां बिन सूनां दिनड़ा म्हारा,
थां बिन सूनी रात जी।
आओ सायब चार दिवस थें,
सुण लो मन री बात जी।।
आखी आखी रात उडीके,
जीव उडीके,गात उडीके।
ओढ़ कसूम्बल रूप उडीके,
लावण आळी ,धूप उडीके।
तकतां तकतां मारग थांरो,
ढळगी अणगिण रात जी।
चेत, जेठ, आसोज उडीके,
सावण भादौ रोज उडीके।
भीज्या-भीज्या खेत उडीके,
धोरां वाळी रेत उडीके।
गांव हुवे जद भेळो सारो,
चाले थांरी बात जी।
मेल माळिया कमठा माँगे,
रिपिया रोज साँवठा माँगे।
अगला महिना पीतर जागे,
बाबोसा री बरसी आगे।
भेळा हुग्या दुनिया भर रा,
धोक,झडूला,जात जी।
दादीसा रो जी नीं सोरो,
नाम रटे हैं थांरो कोरो।
बाईसा रो करणो फेरो,
कारज सारा आय अन्वेरो।
आँगळियां दिन गिणता गिणता,
महिना हुग्या सात जी।
आशा पाण्डेय ओझा
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