निश्चल छंद
धीमे-धीमे साँझ ढली कुछ, इस विध आज।
नार नवेली सम थी उसके,मुख पे लाज।।
चुनरी नीली थी कहीं कहीं,पीले हाथ ।
पल-पल उसे निरखता सूरज,चलता साथ।।
आशा पाण्डेय ओझा
धीमे-धीमे साँझ ढली कुछ, इस विध आज।
नार नवेली सम थी उसके,मुख पे लाज।।
चुनरी नीली थी कहीं कहीं,पीले हाथ ।
पल-पल उसे निरखता सूरज,चलता साथ।।
आशा पाण्डेय ओझा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें