जुलाई 18, 2017

निश्चल छंद

निश्चल छंद

धीमे-धीमे साँझ ढली कुछ, इस विध आज।
नार नवेली सम थी उसके,मुख पे लाज।।
चुनरी नीली थी कहीं कहीं,पीले हाथ ।
पल-पल उसे निरखता सूरज,चलता साथ।।
आशा पाण्डेय ओझा

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