जुलाई 31, 2017

आईना

आइना  भला कब किसी को सच बता पाया है
जब भी देखा दायाँ अंग बाईं तरफ नज़र आया है
ऐसा नहीं  किधूप   जिंदगी में कभी आई ही नहीं
आके पलट गई, जो देखा  दुआओं का साया है
लाडले ने दुत्कारा,  फिर पिता ने अश्क पिए हैं
बहू ने आज फिर न दी रोटी  माँ ने ग़म खाया है
दिल उसका मजबूत पहलवान के शरीर से कम नहीं
जिस किसी ने जम कर दर्दो ग़म का मेवा खाया है
मौसम के लबों पर क्यों है आज भीगी ग़ज़ल आशा
क्या आज फिर तेरे सुर्ख लबों पर मेरा नाम आया है
आशा पाण्डेय ओझा "आशा
"http://www.youtube.com/watch?v=1pYEYSw9HBU

2 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 01 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

यथार्थपरक सोच को उकेरने में सफल रही है आपकी रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं !