जुलाई 18, 2017

कौन

भटकी नाव सँभाले कौन।
जोखिम में जाँ डाले कौन।।

पूत विदेशों के बाशिंदे,
खोंलें घर के ताले कौन।

सबके अपने अपने ग़म हैं,
सुने हमारे नाले कौन।

उसके जलवे और अदाएं,
उसकी बातें टाले कौन।

बारूदों पर जब चलना हो,
पग के शूल निकाले कौन।

रुग्ण पड़ी माँ बच्चे छोटे
देगा इन्हें निवाले कौन।

हाय बुढ़ापा बैरी आया,
हमको रोटी डाले कौन।

उल्फ़त से तो दूरी अच्छी,
रोग भला ये पाले कौन।

सारा घर ही दफ़्तर जाता,
झटके घर के जाले कौन।

उलझे हम तुम मोबाइल में,
दीप साँझ का बाले कौन।

पाप वासना घट में बैठे,
इनका भूत निकाले कौन।

साहब, बाबू सबसे डरते,
फाइल कब अटकाले कौन।

जिस दिन हमने छोड़ी दुनिया,
शेर कहेगा आले कौन।

मेरे अंदर बैठा "आशा"
लिखता गीत निराले कौन।
आशा पाण्डेय ओझा

1 टिप्पणी:

Meena sharma ने कहा…

वाह ! एकदम सच्ची बात !