जनवरी 26, 2010

लड़की

न दुत्कारो! रात का अँधेरा कह कर मुझको
जन्मता मेरी ही कोख से तुम्हारे घर का उजाला
कड़वा समझ गिरा देते जिसे हाथ में लेने से पहले
जो तुमको लगता अमृत ,मुझी में पनपता वो प्याला
मेरी पुस्तक "दो बूँद समुद्र के नाम "से

1 टिप्पणी:

खोरेन्द्र ने कहा…

जन्मता मेरी ही कोख से तुम्हारे घर का उजाला
vah ...bahut khub