लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
जनवरी 26, 2010
धीमे धीमे जल
मत फ़ैल जंगल की धधकती आग की तरह धीमे -धीमे जल मंदिर के चराग की तरह ज़िन्दगी में कोई न कोई ख़ता जरूर हुई होगी आज भी बाक़ी है चाँद के दामन पे दाग की तरह मेरी पुस्तक "ज़र्रे ज़र्रे में वो है "से
1 टिप्पणी:
ज़िन्दगी में कोई न कोई ख़ता जरूर हुई होगी
आज भी बाक़ी है चाँद के दामन पे दाग की तरह
bahut bahut -jindagi ke karib laate shbd
bahut sundar
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