अरी ओ दरिद्रता !
काश !तुम होतीं
मेरे मन का एक निष्ठुर ख़याल
तो हर हाल में हंस कर तुम्हे टाल देती
बनाये रखने को संसार में
एक सरीखी सम्पन्नता
कभी ख़याल में भी
मै न लाती
तुम्हारा ख़याल !
मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे " से
लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
1 टिप्पणी:
बनाये रखने को संसार में
एक सरीखी सम्पन्नता
bahut sundar khyal ...
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