जनवरी 26, 2010

बेचारी मेरी आँखें

अपने मरने के बाद किसी को दान में दे जाना चाहती थी मैं अपनी आँखें
ताकि मेरे मरने के बाद भी देख सके इस ख़ूबसूरत जहान को ये मेरी आँखें
पर अब नही देना चाहती ,किसी को किसी भी कीमत पर मैं अपनी आँखें
ये बहता लहू ये सुलगते मंज़र मेरे मरने के बाद भी क्यों देखे बेचारी मेरी आँखें ?
मेरी पुस्तक "दो बूँद समुद्र के नाम "से

1 टिप्पणी:

खोरेन्द्र ने कहा…

ये बहता लहू ये सुलगते मंज़र मेरे मरने के बाद भी क्यों देखे बेचारी मेरी आँखें ?

bat sahi hain ..
bahut khub