जनवरी 27, 2010

अरी ओ दरिद्रता !

अरी ओ दरिद्रता !
काश !तुम होतीं
मेरे मन का एक निष्ठुर ख़याल
तो हर हाल में हंस कर तुम्हे टाल देती
बनाये रखने को संसार में
एक सरीखी सम्पन्नता
कभी ख़याल में भी
मै न लाती
तुम्हारा ख़याल !
मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे " से

1 टिप्पणी:

खोरेन्द्र ने कहा…

बनाये रखने को संसार में
एक सरीखी सम्पन्नता

bahut sundar khyal ...