फ़रवरी 05, 2010

कुछ हाइकु

ढलेगी शब
झिलमिला रही है
शम्मे -उम्मीद

आँखे सावन
उजड़ा बेवा -मन
कैसा मौसम ?

कद्दे -आदम
आईने हर तरफ
फिर भी झूंठ

कटे पेड़ ने
खोल दी मेरी आंखे
हरिया कर

जीवन थैला
भरा तमाम उम्र
अंततः खाली

आंतकवाद
गंभीर परेशानी
मानवता पे

संग रहते
अजान ओ आरती
वक्ते -सुबह

यतीम- बेवा
मुरझाये गुल से
उजड़ा बाग़

आदी हो जाती
सितम सहने की
झुकी गर्दन

क्यों आते ज्यादा
सर्दी ;गर्मी वर्षा
गरीब-घर

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