फ़रवरी 09, 2010

ओ ह्रदय!

ओ हृदय !लड़ो मस्तिष्क से
रखो उसें निज अधीन
मस्तिष्क का तुम पर आधिपत्य
बना देगा ,सृष्टी सवेंदनहीन

मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे "

कोई टिप्पणी नहीं: