फ़रवरी 05, 2010

कैसे सुनूँ बसंत की चाप

ऐ मन बता कैसे सुनूँ बसंत की चाप
नज़र ओ मन पे हावी आंकत की छाप
चंग ,मृदंग पे गोले बारूद की थाप
वक्त को लगा जाने ये किसका श्राप
सुलग रही हवाएं , रोशनी रही कांप
मन हुआ कातर विनाश सृष्टि का भांप
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

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