लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
जनवरी 27, 2010
नही पूज पाउंगी
और नही पूज पाउंगी उन पथरों को जिनके अस्तित्व की चाह ने किया हो इंसानियत को लहू लुहान जीवन श्मशान मेले वीरान इन्सान को इन्सान से अनजान ज़र्रे ज़र्रे को परेशान मेरी अटूट आस्था को हैरान ! मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे " से
1 टिप्पणी:
इन्सान को इन्सान से अनजान
sach aur sundar
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