फ़रवरी 10, 2010

ज़ज्बा कितना सच्चा रहा होगा !

इस खुले आँगन से तो वो कुंजे -कारागार अच्छा रहा होगा
जंगे-आज़ादी में सरीक जहाँ वतन का हर बच्चा रहा होगा
उन लम्हों की तफसीरें पढ़ के बहरा आँखे नम हो जाती हैं
वतन पर मिटने वालों का ज़ज्बा कितना सच्चा रहा होगा
मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो है "से

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