लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
फ़रवरी 09, 2010
बिजली की तर्जन संग
बिजली की तर्जन संग क्यों दौड़ रहे मेघ होकर दिशाहीन क्षत-विक्षत आशंक-त्रस्त इधर-उधर क्या आकाश में भी व्यापत हो गया भय रक्त-पिपासु आंतक वादियों का ! मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे "से
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