फ़रवरी 09, 2010

बिजली की तर्जन संग

बिजली की तर्जन संग
क्यों दौड़ रहे मेघ
होकर दिशाहीन
क्षत-विक्षत
आशंक-त्रस्त
इधर-उधर
क्या आकाश में भी
व्यापत हो गया भय
रक्त-पिपासु
आंतक वादियों का !
मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे "से


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