रोज़ साँझ ,दीये की लौ में
नज़र आता है
एक आलौकिक चेहरा
मंत्र -मुग्ध सी मै
खोकर उसमें ,
भूल जाती हूँ -
शेष आरती
हे प्रभो मेरे !
क्या प्रकट होने लगे हो तुम
मेरी खातिर ,दीये की लौ में !
या अनुरक्त ,आसक्त मै
खोई हुई किसी ओर प्यार में
ढूँढने लगती हूँ ,
छवि उस प्रियतम की
इस दीये की लौ में
मेरी पुस्तक "वक्त की शाख पे " से
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