फ़रवरी 09, 2010

बिखरते टूटते रहे

सहरा में आब-ऐ नक्श ढूंढते रहे

दीवारो-दर तेरे ही अक्श ढूंढते रहे

जाने तूं है भी कि नही, तेरी खातिर

हम काबे -काशी में बिखरते टूटते रहे

मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो हे "से

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