फ़रवरी 05, 2010

इंसानियत सिखाई जाये

इक बज़्म मोतबर लोगों की बुलवाई जाये
फ़ातेहा नफ़रतों की उनसे पढ़ाई जाये
या सारी पाठशालाएं बंद कर दीजिये
या वहां तहरीरे -इंसानियत सिखाई जाये
बेशक पर्दों का रिवाज़ अब बहुत पुराना हुआ
पर नज़र जब भी उठे,शर्म से उठाई जाये
हल किये जाएँ पहले मुफ़लिसी के ये मसले
इन देरो-हरम की बातें फिर उठाई जाएँ
राहतें दिल की खुद ही हासिल हों जायेंगी
चैन ओ सुकून के संग दोस्ती बढाई जाये



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