फ़रवरी 11, 2010

तलाश है मुझको

इन तमाम घुप्प अंधेरों को पराभूत कर सके जो,
ऐसी ही एक किरण की तलाश है मुझको
आहिंसा का चाँद जला सके जो हर दिन हर रात,
ऐसे ही एक गगन की तलाश है मुझको
पानी की बूंदों की बजाय बरसा सके प्रेम- शांती
ऐसे ही एक सावन की तलाश है मुझको
जिसमे ईर्ष्या,द्वेष,कटुता,नफ़रत न हो लेश मात्र ,
ऐसे ही एक मन की तलाश है मुझको
असंख्य,अगनित गोडसों की क़तारों के बीच छुपे,
गांधी से एक जीवन की तलाश है मुझको
मेरी पुस्तक दो बूँद समुद्र के नाम "से

कोई टिप्पणी नहीं: