वो अंधेरों में रोशन होता गया
जो दीवारों से चिलमन होता गया
बिखरे हुवे तिनके यूं जोड़े हमने
फिर से प्यार का नशेमन होता गया
पोष जितना भी जो न बरसा था कभी
आँख का पानी सावन होता गया
कोरी मिट्टी सा जग में आया था बशर
वो हसरतों का बर्तन होता गया
नज़र की गहराइयों से देखा जहाँ
सब कुछ साफ़ दर्पण होता गया
कबीर को पढ़ लिया इक परिंदे ने
सारा जहाँ उसका चमन होता गया
जो दीवारों से चिलमन होता गया
बिखरे हुवे तिनके यूं जोड़े हमने
फिर से प्यार का नशेमन होता गया
पोष जितना भी जो न बरसा था कभी
आँख का पानी सावन होता गया
कोरी मिट्टी सा जग में आया था बशर
वो हसरतों का बर्तन होता गया
नज़र की गहराइयों से देखा जहाँ
सब कुछ साफ़ दर्पण होता गया
कबीर को पढ़ लिया इक परिंदे ने
सारा जहाँ उसका चमन होता गया
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