लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
फ़रवरी 05, 2010
दुछत्ती सा मन
घर की दुछत्ती सा निरंतर अथाह अनंत दुखों का बोझ ढोता है मन
ज़िंदगी फ़िर भी करती है कोशिश बैठक की तरह मुस्कराने की
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें