ये किसने रख दिए तबाही के ख़ार मेरे शहर की थाली में
हम तो गुल परोसने वाले लोग थे ज़िन्दगी की प्याली में
रंगे -दर्द समझ के तड़फ उठे हम देख कर जिन निगाहों को
हमे क्या खबर थी रंगे -खूं उतरा है उन निगाहों की लाली में
मेरी पुस्तक ज़र्रे -ज़र्रे में वो है "से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें