काश !ये दिल दिल्ली की कुर्सी होता ,
फिर ये कभी न टूटता न तनहा होता
इस को पा लेने की कईयों में होड़ होती,
संभालने में मेहनत क़मर तोड़ होती
ये भी कईयों को आजमाता,मौका देता,
सज़ा उसको देता जो इसको धोका देता
जो इसको लगता वफ़ादार,इसमें वापस आता ,
इसके साथ दग़ा करने पर बुरा हाल होता ,
वो पांच साल या इससे पहले ही रोता
इसके साथ खेलना इतना आसन न होता,
जो करता ऐसी नादानी पश्चाताप में रोता
वफ़ादारों को परखने को समय की परिधी होती,
बेवफ़ाओं को हटाने के लिए कोई विधि होती
हर किसी के सपनों का ये सरताज़ होता,
काश !ये दिल दिल्ली की कुर्सी होता
मेरी पुस्तक "दो बूँद समुद्र के नाम "से
8 टिप्पणियां:
आपकी कलम सदा ऐसी ही चलती रहे,और आगे बढते रहें.बहुत बहुत साधुवाद.
aapka hardik aabhar Bhadauria sir
naye blog ka swaagat hai asha ji
वफ़ादारों को परखने को समय की परिधी होती,
बेवफ़ाओं को हटाने के लिए कोई विधि होती
.....so nice and beautiful!!!
bahut sunder rachna,shubh kamnaye Ashaji
asha ji nice
अति सुंदर.......!!
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