मार्च 02, 2010

ज़िन्दगी का अलाव

बुझने चला है अब मेरी ज़िन्दगी का अलाव
साँसे भी गीली लकड़ियों सी दुन्धाने लगी है
हो सके तो आ के बुझा दे इस इंतज़ार को
मेरी मौत की आँखें भी डब-डबाने लगी है
मेरी पुस्तक ज़र्रे -ज़र्रे मै वो है "से

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