वो डूबती हुई ज़िंदगियाँ
वो उफनता हुआ समन्दर
वो सिसकती,तड़फती सांसे
वो काल का भयावह मंज़र
दर्द के दरिया में डूब गई
किश्तियाँ कितनी मसर्रतों की
ये कैसा तूफाँ आया जो बूझा गया
अनगिनत शमाएँ हसरतों की
हर नज़र ढूंढ रही अपनों के चेहरे
हर धड़कन को अपनों का इंतजार
जाने किधर बूँद -बूँद सी बिखर गई
इस समन्दर की बाँहों में जीवन धार
डूब गये थे कुछ ख़्वाब सुहाने
डूब गई थीं कुछ मधुर आशाएं
डूब गए थे खुशियों के अंजुमन
थीं हर सू बांह फैलाती निराशाएं
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
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