मार्च 07, 2010

वह आदमी जीते जी मर गया
दहसत में जो घर छोड़ कर गया

ख़ूबसूरती की जो इक मिसाल था
वह आइना-ऐ -दिल से डर गया

यों बरसा ग़म का पगला बादल
सहरा-ऐ-दिल बन समंदर गया

वह आज़ाद परींदे सा आया
गया तो प्रीत सें बंध कर गया

अस्मत लुटा की खुदकशी जिसने
उसें देखने पूरा शहर गया

हाय !उसी शहर की अनदेखी से
एक परिवार भूख से मर गाया

आंतक का ये आवारा सांड
चैन-सुकून की फ़सलें चर गया


1 टिप्पणी:

jitendra ने कहा…

अस्मत लुटा की खुदकशी जिसने
उसें देखने पूरा शहर गया

हाय !उसी शहर की अनदेखी से
एक परिवार भूख से मर गाया
hakikat ka isse sundar varnan or kya hoga