मार्च 03, 2010

जो तू चल के

जो तू चल के इक बार आ जाये

अज़ल गिरफ़्त को करार आ जाये

अज़ब कशमकश में है मौत मेरी

कहीं फिर न तुझ पे प्यार आ जाये

मेरी पुस्तक "ज़र्रे-ज़र्रे में वो है "से

कोई टिप्पणी नहीं: