मार्च 04, 2010

इक ऐसा स्वर्णिम सवेरा होगा

इक ऐसा स्वर्णिम सवेरा होगा
फ़िर न कहीं कोई अँधेरा होगा

सूरज उगेगा ऐश्वर्य वैभव का
समृद्धि का घर-घर फेरा होगा

आनंद-उत्सव की होंगी बस्तियां
चमकता हुआ हर चेहरा होगा

विषाद-वेदना जहाँ वर्जित होंगे
प्रहरी सुख प्रमोद का घेरा होगा

गूंजेगी "जय हो" की अनुगूंज
भाल पे कीर्ति का सेहरा होगा

उन्नति-प्रगति की होगी हरियाली
ऐसा सुन्दर भारत -वर्ष मेरा होगा

फिर चहकेगी सोने की चिड़िया
उस दिन धन्य जीवन मेरा होगा

मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

1 टिप्पणी:

Rajeev singh ने कहा…

well perfect imagination. the best thing is the perfect imagination is presented in perfect words.