लेखन आपके मन का खालीपन भरता है . मन को सुकूं मिलता है ,.मेरे भीतर जब कोई अभाव कसमसाता है तब शायद रचना जन्म लेती है, मुझे पता नहीं चलता आभाव क्या पर कोई रिक्तता होती है है कुछ उद्द्वेलित करता है इन भावों की आत्यंतिक उत्कटता और विचारों का सघन प्रवाह मेरे शब्दों को आगे बढ़ाता है मेरी कलम में उतर आता है . कभी शब्द मुझमे थिरकन पैदा कर देते हैं कभी जड़ बना देते हैं मुझे क्षण -क्षण सघनतर होते हुवे विचारों के बादलों को कोई बरसने से रोक नहीं पाती हूँ तो कलम उठानी ही पड़ती है .
मार्च 06, 2010
आंसू लाचारी के
क़त्ल कन्याओं का यूं छुप-छुप न कीजिये जाने- अनजाने खुद को ही सज़ा न दीजिये सृष्टि हो जायेगी मानव विहीन बिन नारी के फ़िर रोओगे बैठकर आंसू अपनी ही लाचारी के
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