मार्च 04, 2010

हर इक ज़िंदगी जैसे मौत का घर है
हर साँस खौफ़जदा,हर दिल में डर है
कौन करे किसी की मौत का मातम
यहाँ रूह भी ज़िस्म से बेखबर है
हर तरफ़ है बेइंसाफ़ी की हवाएं
हर तरफ़ दरिया ऐ जोरोज़बर है
खुद का बोझ खुदी को ढोना होगा
रिश्तों की भीड़ में तनहा बसर है
मौत ओ ज़िंदगी में फ़र्क इतना ही
इक कड़वा घूँट ,इक मीठा ज़हर है

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