तेरे बारे में बस इतनी खबर है
मेरे दिल में आज भी तेरा घर है
ताज दौलत से बनता, मुहब्बत से नहीं
प्यार ग़रीब का क्या कमतर है
आज महताब घर से निकला ही नहीं
या बैठा उनकी जुल्फों में छुपकर है
वादियाँ गुल से महकाने वालों की
सिसक रही ज़िंदगी काँटों पर है
ज़ख्म तो भर गए तेरी बेवफाई के
दर्द का अभी बाक़ी कुछ असर है
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