मार्च 02, 2010

आँखों में

बता ये कौनसा गम इज़्तराब है तेरी आँखों में
ज़रूर कोई अधूरा ख्वाब है तेरी आँखों में

क्यों कतरा-ऐ शबनम छलकाती रहती हैं हर वक्त
हो न हो कोई चेहरा गुलाब है तेरी आँखों में

जाने क्यों चाँद को भी नहीं देखा करते हो आजकल
यकीनन कोई दूजा महताब है तेरी आँखों में

लाख तैरना आये चाहे किसीको वो डूब जाएगा
दर्दो -गम का इक ऐसा गिर्दाब है तेरी आँखों में

नहीं पूछेंगे कैसे काटी तुमने इंतज़ार में उम्र
हर इक लम्हे का ज़वाब है तेरी आँखों में

मेरी पुस्तक "ज़र्रे -ज़र्रे में वो है "से


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