कहीं धूप में जले लोग
कहीं बर्फ में गले लोग
दर्दो-ग़म की बस्ती में
तन्हाई के काफ़िले लोग
बारूदों की तल्ख़ धूप में
खूं-पसीने से गिले लोग
बिन जुर्म जो काटे सज़ा
वो सलीब की कीलें लोग
कुछ पड़े हैं लाशों जैसे
कुछ हैं गिद्द-चीलें लोग
सागर थे जो सूख गए
बचे रेत के टीले लोग
खूं भी नहीं खौलता अब
नहीं होते लाल-पीले लोग
पाप अधम के बाजों पर
नाच रहे रंगीले लोग
दुनिया की फुलवारी पे
उग आये कंटीले लोग
बिन पैंदे के लोटे सब
नहीं रहे हठीले लोग
कंचन वर्ण सी काया में
कलुष भरे पतीले लोग
नफस नफ़स ज़हर भरा
दिखते नही नीले लोग
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें