अपनी ज़िंदगी को यहीं तमाम करतें हैं
चल इसें किसी और के नाम करतें हैं
बहुत दूर तक बहे बदी की इस नदी में
अब नेकी तट पर थोडा विश्राम करते हैं
रग-रग में ईर्ष्या-द्वेष के बेलों की हुंकारें
संयम साधना से उनपे लगाम करतें हैं
हावी है युगों से इस आनन् कई दसानन
इन्हें मिटाने को,खुद ही को राम करतें हैं
मृत्यु-शैया सन्मुख जीवन उत्सव हो जाये
आ पर हित में ऐसा कोई काम करतें हैं
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर से
चल इसें किसी और के नाम करतें हैं
बहुत दूर तक बहे बदी की इस नदी में
अब नेकी तट पर थोडा विश्राम करते हैं
रग-रग में ईर्ष्या-द्वेष के बेलों की हुंकारें
संयम साधना से उनपे लगाम करतें हैं
हावी है युगों से इस आनन् कई दसानन
इन्हें मिटाने को,खुद ही को राम करतें हैं
मृत्यु-शैया सन्मुख जीवन उत्सव हो जाये
आ पर हित में ऐसा कोई काम करतें हैं
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर से
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