पलट गई रोशनी मेरे दर तक आते हुए
जो देखा तुम्हे हम से रूठ कर जाते हुए
फ़ज़ा आज इतनी नम-नम सी क्यों है
कोई रोया होगा किसी को भूलाते हुए
बदमाज़ज़ हवा ने जाने क्या कह दिया
लौट गए बादल जलती धरा पे छाते हुए
छटपटा रही है तेरे दीद की ये आरजू
और कितनी देर लगेगी तुझे आते हुए
कैसे जाना कि हम हिन्दू ,मस्लिम या सिख हैं
कुछ तो न लिखा था हम पे ज़हां में आते हुए
उसकी बेवफ़ाई से भी न टूटी थी जितना
उतनी बिखर रही हूँ उसके ख़त लौटाते हुए
जो देखा तुम्हे हम से रूठ कर जाते हुए
फ़ज़ा आज इतनी नम-नम सी क्यों है
कोई रोया होगा किसी को भूलाते हुए
बदमाज़ज़ हवा ने जाने क्या कह दिया
लौट गए बादल जलती धरा पे छाते हुए
छटपटा रही है तेरे दीद की ये आरजू
और कितनी देर लगेगी तुझे आते हुए
कैसे जाना कि हम हिन्दू ,मस्लिम या सिख हैं
कुछ तो न लिखा था हम पे ज़हां में आते हुए
उसकी बेवफ़ाई से भी न टूटी थी जितना
उतनी बिखर रही हूँ उसके ख़त लौटाते हुए
1 टिप्पणी:
bahut hi badiya n Heart toucing Gazal ...
n this line is so nice
:
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उसकी बेवफ़ाई से भी न टूटी थी जितना
उतनी बिखर रही हूँ उसके ख़त लौटाते हुए ...............
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