वो नंगे भूखे ज़िस्म,वो पथराई आँखें
पूछ रहे मुझ से ये दुनिया किसने बनाई॥?
क्यों रोशनी से भरा महल ये तेरा
क्यों मेरी झोंपड़ी में घनघोर अँधेरा
क्यों तेरी आँखें चाँद सी चमके
क्यों मेरी आँखों में है करुनाई
वो नंगे भूखे ................
पूछ रहे मुझसे ........
क्यों तुझको सुख सेज बिछाता
क्यों मुझको दुःख की शैया सुलाता
या नज़र में उसकी हम इंसान नहीं
या फ़िर एक नहीं है अपना रघुराई
वो नंगे भूखे ....
पूछ रहे मुझसे .......
क्यों हमीं पे गिरती बिजलियाँ मुफ़लिसी की
क्यों हमीं को डूबोते ये ग़म के धारे
क्यों थामे रहता दर्द दामन हमारा
क्यों टूटते हमारी ख्वाहिशों के तारे
वो नंगे भूखे ......
पूछ रहे मुझसे ....
मरी पुस्तक एक कोशिश रोशनी की ओर "से
पूछ रहे मुझ से ये दुनिया किसने बनाई॥?
क्यों रोशनी से भरा महल ये तेरा
क्यों मेरी झोंपड़ी में घनघोर अँधेरा
क्यों तेरी आँखें चाँद सी चमके
क्यों मेरी आँखों में है करुनाई
वो नंगे भूखे ................
पूछ रहे मुझसे ........
क्यों तुझको सुख सेज बिछाता
क्यों मुझको दुःख की शैया सुलाता
या नज़र में उसकी हम इंसान नहीं
या फ़िर एक नहीं है अपना रघुराई
वो नंगे भूखे ....
पूछ रहे मुझसे .......
क्यों हमीं पे गिरती बिजलियाँ मुफ़लिसी की
क्यों हमीं को डूबोते ये ग़म के धारे
क्यों थामे रहता दर्द दामन हमारा
क्यों टूटते हमारी ख्वाहिशों के तारे
वो नंगे भूखे ......
पूछ रहे मुझसे ....
मरी पुस्तक एक कोशिश रोशनी की ओर "से
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