सुख सुविधाएँ भोगे सम्पूर्ण
बहुतेरे साधू गृहस्थ ,संसारी
डोंगी,कपटी छलिया,छपटी
पाखंडी, मायावी,व्यभिचारी
रुद्राक्ष,तिलक भगवा,धारकर
फुसलाते जन-मन बारी-बारी
दो खोटे मनके चार मन्त्रों के बल पर
माने खुद को ज्ञान के अधिकारी
वेद, पुराण टिका, भाष्यों पर
तनिक न बुद्धि गईं विचारी
एसी घर कारें,व्यपार की कतारें
दौलोत ,सोहरत पे जाते बलिहारी
फिल्म,राजनीति ,कल्बऔर कैफे
सुस्वादिष्ट व्यंजन के चस्कारी
अफीम,दारु ,भंग -चरस-गांजा
करते सेवन पान,गुटखा,सुपारी
माँ,बहन,बेटी किसी को न छोड़े
रूप ,विषय ,वासना के पूजारी
हाथ कमंडल,माथे पे जटाजूट
ठग,दुष्टि ,धूर्त ,बड़े विषधारी
करतूतें,कारनामे रोज की खबरें
अक्सर घेरे रहते इनको डंडाधारी
फ़िर भी आसक्ति अंध है हमारी
यह कैसी फ़ैली धर्म की महामारी
हर तरफ जय-जय भगवाधारी
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