मैं परेशान हूँ क्योंकि वक्त परेशानी का है
मेरा नहीं मसला वतन की जिंदगानी का है
ये सुलगते मंज़र,ये संवेदनाओं की ख़ामोशी
वाकई मैं हैरान हूँ क्योंकि वक्त हैरानी का है
बैठे रहेंगे कब तक यूं मूँद कर अपनी आँखें
जगो!वक्त अब हर ज़र्रे पर निगरानी का है
ये ख़ामोशी,ये अनजानापन आखिर कब तक
हटा दो मुंह से हाथ ये वक्त मुखर वाणी का है
धुंधले हुए इतिहास के पृष्ठों पर रचे हुए हरूफ़
वक्त को इंतज़ार अब इक नई कहानी का है
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से
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