मार्च 12, 2010

पदचिन्ह

इसलिय नहीं छोड़ रही हूं
अपने पदचिन्ह
कि शायद करे कोई मेरा अनुसरण
बल्कि इसलिए गहरे गड़ा रही हूं
ज़मीन में अपने पाँव
ताकि बता सकूँ दुनिया को
तमाम अवरोधों,विरोधों
आंधी ,तूफ़ानो के बावजूद
मन के पावों में उठती
दर्द भरी टीस के उपरान्त भी
रुकना मंजूर न था मुझको
मेरे पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

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