मार्च 04, 2010

खुद ही से दर जायेगा आदमी

सरपट भागती हुई ज़िंदगी में

कंही ठहर जायेगा आदमी

कसैला-विषैला मन का वातावरण

जीते जी मर जाएगा आदमी

ख्वाहिशों के ताने -बाने में

खुद बिखर जायेगा आदमी

दौड़ता हुआ सभ्यता की अंधी दौड़

संस्कृति बिसर जायेगा आदमी

मशीनों के बीच बन गया है मशीन

जाने किधर जायेगा आदमी

देख लिया जो शीशा इक दिन अनजाने में

खुद ही से डर जायेगा आदमी

मेरी पुस्तक "एक कोशिश रौशनी की ओर " से

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