मार्च 20, 2010

रिश्ते - नाते

न जाने ये कैसे रिश्ते नाते हैं
चाह कर भी जो तोड़े नहीं जाते हैं
रोम -रोम गाता जिनकी स्नेह गाथा
वो नफरतों का गम हमें दे जातें हैं
बेसबब रूठे रहते हैं अक्सर हमसे
लाख चाहें तो भी हम मना नहीं पाते हैं
फ़िर से जिनको चुनना आसां न हो
रिश्तों के मोती ऐसे क्यों बिखरातें हैं
हम हँसना चाहें साये में जिनके
ज़ार-ज़ार बार-बार वो हमें रुलाते हैं
मोह की नाव ले जाती हमें उनकी ओर
वो हैं कि कटुता के भंवर बिछाते हैं
इतना भी न गिराओ नज़रों से इनको
रिश्ते कच्चा काच हैं ,चटक जाते हैं
मेरी पुस्तक" एक कोशिश रोशनी की ओर "से

4 टिप्‍पणियां:

अरुणेश मिश्र ने कहा…

रिश्ते नातो की जीवन्तता कितनी पावन है रचना मे निरूपित है , प्रशंसनीय ।

C.P.Sukhwal ने कहा…

Dear Ashaji,

Rishte-Naye truely represents the reality of life felt by all but can not easily be expressed.

C.P.sukhwal
Mumbai

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' ने कहा…

आशा जी प्रणाम ! आप का स्नेह सदा हम पर और साहित्य पर इस प्रकार ही बना रहे यही हमारी ईस्वर से दुआ !
आप की रचनाओं के बारे में क्या कहें हमारे पास शव्दों का जमवाडा जी विलुप्त हो जाता है, आप से तो हम रास्ता चलना सिख रहे हैं, आप के साहित्य पर कुछ कहने से पहले ही हमारे शव्द विलुप्त हो जाते हैं आप के शव्दों और पंक्तियों की जितनी भी चर्चा की जाय वह साहित्य के धरातल पर कम ही होगी .............मुझे आप के हर नए शव्द की प्रतीक्षा रहती है इसी के साथ .........
आप के शव्दों का प्रतीक्षक ........राजेंद्र सिंह कुंवर 'फरियादी '

Ramesh Saraswat ने कहा…

आशा जी आपकी कविताए मेरे मन मे एक हलचल सी मचा देती है, आप इतना अच्छा और सुंदर मत लिखा करियेगा , मे सोच मे डूब जाता हूँ कि किस तरह से अपनी भावना आप पर प्रकट करूँ कि आपको भी बुरा न लगे और आप मुझे गलत भी नहीं समझें , काश हम आपसे साक्षात मिल पाते और अपने को खुशनसीब समझ सकते ....खैर आप जाने दें जरूरी तो नहीं की जो सोचा जाये वो पूरा ही हो