मार्च 20, 2010

इक तेरे तसव्वुर ने महबूब यूं संवार दी ज़िन्दगी
कि तेरे बगैर भी हमने हँस कर गुजार दी ज़िन्दगी
राहें -मुहब्बत में दर्दो -ग़म देने वाले बेदाद सुन
तेरी इस सौगात के बदले हमने निसार दी ज़िन्दगी
तमाम उम्र यूं रखा हमने अपनी साँसों का हिसाब
जैसे किसी सरफ़िरे ने ब्याज़ पर उधार दी ज़िन्दगी
बात मुक़दर की जब आये शिकवा -गिला बेमानी है
जिसने तुझे गुल बनाया उसी ने मुझे ख़ार दी ज़िन्दगी
तूं ही बता ऐ ख़ुदा उसकी आतिश -अफ़सानी कैसे बुझे
चाह-ऐ-सुकूं में जिस शख्स को तूने अंगार दी ज़िन्दगी
हर इक ग़म को बड़े करीने से हँसी में छुपा लिया हमने
ऐ ख़ुदा तेरा शुक्रिया ,क्या खूब हमें फनकार दी ज़िन्दगी
किनारों की खफगियों से इस दर्ज़ा शिकस्त हुआ दिल
आख़िरकार "आशा " ने गिर्दाब में उतार ली ज़िन्दगी

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वेहतरीन गज़ल. पहली बार आपके ब्लोग पर आया. सोच रहा हू पहले क्यू नही आया.

sanu shukla ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना है

धन्यवाद

meenakshi ने कहा…

so beautiful!!

Vandana Ramasingh ने कहा…

तमाम उम्र यूं रखा हमने अपनी साँसों का हिसाब

जैसे किसी सरफ़िरे ने ब्याज़ पर उधार दी ज़िन्दगी...
बेहतरीन गज़ल

बेनामी ने कहा…

Kehne ke liye alfaaz nahi
Aur alfaaz mere kisi ke mohtaaz nahi
~~~Say Love Jassi~~~

yashoda Agrawal ने कहा…

सखी आपने बताया ही नहीं...
अनजान रहीं मैं अब तक...नहीं तो फेसबुक से पहले ही आप मुझे यहीं पाती.......वो तो आंसू भरी आंखे लेनें गूगल इमेज पर गई तो मैं अपने आपको इस ब्लाग में पाई....बहरहाल देर आयद दुरुस्त आयद.... मैंने फालो किया है इस ब्लाग को
उम्दा ग़ज़लों की दीवानी हूं मै....साधुवाद सुन्दर रचनाओं के लिये
सादर
यशोदा